नई दिल्ली – Dr. Anandi Gopal Joshi : अगर आज हम बेटियों को डॉक्टर बनते देखते हैं, तो उसकी नींव आनंदीबाई जैसी स्त्रियों ने रखी थी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि उम्र, समय, परिस्थितियाँ — कुछ भी हमारे सपनों के आड़े नहीं आ सकता, जब तक हमारे इरादे मजबूत हों।
आज हम बात कर रहे हैं डॉ. आनंदीबाई जोशी की, जिनका नाम भारत की पहली महिला डॉक्टर के रूप में इतिहास में दर्ज है। उनके जीवन की कहानी प्रेरणा, साहस और संघर्ष का अद्वितीय उदाहरण है। आज भारत में डॉ. आनंदीबाई जोशी के संघर्ष की वजह से ही करोड़ों बेटियां AIPMT, AIIMS में जाकर न सिर्फ अच्छी डॉक्टर बन रहीं हैं बल्कि दुनिया को बड़ा संदेश दे रही हैं।
बाल विवाह और जीवन की पहली चुनौती
Dr. Anandi Gopal Joshi का जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। मात्र 9 साल की उम्र में उनकी शादी एक प्रगतिशील विचारों वाले युवक गोपालराव जोशी से हुई। गोपालराव खुद शिक्षक थे और महिलाओं की शिक्षा में विश्वास रखते थे। उन्होंने आनंदी को पढ़ाने का निर्णय लिया, जो उस समय समाज के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम था।
Dr. Anandi Gopal Joshi का संकल्प
जब आनंदीबाई केवल 14 साल की थीं, तब उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में बच्चे की मृत्यु हो गई। इस घटना ने आनंदीबाई को अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने निश्चय किया कि वे डॉक्टर बनेंगी ताकि किसी और माँ को ये दर्द न सहना पड़े। ये संकल्प उस समय बेहद असाधारण था, जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना भी सामाजिक वर्जना था।
अमेरिका जाने का ऐतिहासिक निर्णय
Dr. Anandi Gopal Joshi ने आनंदीबाई को अमेरिका भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने अमेरिका के “Women’s Medical College of Pennsylvania” में एडमिशन दिलवाया, जो आज “Drexel University” के नाम से जाना जाता है। 1883 में आनंदीबाई अकेली अमेरिका गईं। ये निर्णय उस समय एक बड़ी क्रांति जैसा था, क्योंकि भारतीय महिलाओं का विदेश जाना समाज में अस्वीकार्य माना जाता था।

संघर्षों की लंबी यात्रा
अमेरिका में Dr. Anandi Gopal Joshi को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भाषा की परेशानी, स्वास्थ्य समस्याएँ और सामाजिक भेदभाव के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। 1886 में उन्होंने एम.डी. (MD) की डिग्री प्राप्त की और भारत की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव हासिल किया। उनकी थीसिस का विषय था: “Obstetrics among Aryan Hindus”, जिसमें उन्होंने भारतीय महिलाओं की मातृत्व संबंधी समस्याओं पर शोध प्रस्तुत किया।
भारत लौटकर सेवा का संकल्प
एम.डी. की डिग्री लेने के बाद आनंदीबाई भारत लौटीं। उनका उद्देश्य था कि वे अपने देश की महिलाओं के लिए चिकित्सा सेवा प्रदान करें। हालांकि, उनकी सेहत धीरे-धीरे बिगड़ती गई और दुर्भाग्य से टीबी (Tuberculosis) जैसी गंभीर बीमारी के कारण 26 फरवरी 1887 को मात्र 21 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
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Dr. Anandi Gopal Joshi की विरासत
उनके निधन के बाद भी उनका योगदान भुलाया नहीं गया। 1962 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। उनके नाम पर कई अस्पताल, संस्थान और सड़कों के नाम रखे गए हैं। अमेरिका के Drexel University में आज भी उनकी तस्वीर सम्मान के रूप में लगाई गई है।
क्यों महत्वपूर्ण है आनंदीबाई की कहानी?
डॉ. आनंदीबाई जोशी की कहानी न सिर्फ ऐतिहासिक है, बल्कि वर्तमान में भी बेहद प्रासंगिक है। उन्होंने दिखा दिया कि:
- शिक्षा से बड़ा कोई अस्त्र नहीं है।
- महिलाओं को सशक्त करने के लिए समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।
- दृढ़ निश्चय और समर्थन से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आज देशभर में लाखों लड़कियाँ मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं, डॉक्टर बन रही हैं। ये सब संभव हो सका है उन महान महिलाओं की वजह से, जिन्होंने उस समय भी अपने सपनों को नहीं छोड़ा जब समाज ने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की। Dr. Anandi Gopal Joshi की कहानी बताती है कि एक लड़की की पढ़ाई सिर्फ एक परिवार नहीं, बल्कि पूरे समाज को बदल सकती है।
Dr. Anandi Gopal Joshi केवल एक डॉक्टर नहीं थीं, वे एक विचार थीं, एक क्रांति थीं। उन्होंने लाखों बेटियों के लिए एक रास्ता बनाया, जिसमें अब हम गर्व से उन्हें आगे बढ़ते हुए देख सकते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बदलाव लाना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं। उनके जैसे लोग समाज में आशा की किरण बनते हैं और हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि हम जो चाहें, वह बन सकते हैं — बस संकल्प होना चाहिए।
जय हिंद!