दीमा हसाओ, असम : आपने कई अजीब – गरीब घटनाएं और स्थान देखे और उनके बारे में सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी Jatinga Valley के बारे में सुना है ? जतिंगा वैली जहां दूर – दूर से पक्षी आत्महत्या करने के लिए आते हैं। जी हां सही सुना आपने, पक्षी दूर – दूर से आत्महत्या करने के लिए आते हैं। ये जतिंगा घाटी, सुहूम नदी की गोद में बसा एक छोटा आदिवासी गांव है, ये घाटी गुवाहाटी से लगभग 330 km दूर है।
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर पक्षी आत्महत्या कैसे कर सकते हैं ? आत्महत्या करने के लिए पक्षी यहां क्यों आते हैं ? तो चलिए इस घटना के बारे में Bharat Viral News पर विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं। रिपोर्ट बताती है कि, हर साल सितंबर से नवंबर के बीच, खासतौर पर संध्या 6 से 9 बजे के बीच बड़ी संख्या में पक्षी आत्महत्या करने आते हैं। लोगों का दावा है कि, इस दौरान हजारों पक्षी अचानक आसमान से गिरते हैं।
कौन से पक्षी आत्महत्या करते हैं?
यहां आत्महत्या करने वाले मुख्य रूप से दुर्लभ छोटी पक्षी जातियाँ हैं —
- स्विफ्ट्स (Swiftlets)
- बेबलर (Babblers)
- नाइटजार (Nightjars)
- ब्लैक बर्ड्स तथा अन्य छोटी वन-पक्षी
Jatinga Valley में ये रात के अँधेरे में चारों ओर टकराकर गिर जाते हैं। पड़ोसी कहते हैं कि ये अपने आप कूद जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिक बताते हैं कि ये आत्महत्या नहीं, बायोलॉजिकल भ्रम है।
Jatinga Valley: क्या सच में आत्महत्या है?
नहीं, वैज्ञानिक कहते हैं ये आत्महत्या नहीं है, बल्कि प्राकृतिक भ्रम और वातावरणीय आदर्श स्थिति है:
- बायोलॉजिकल रिस्पांस – घने कोहरे, ठंड, और उमस में पक्षियों का नेविगेशन सिस्टम प्रभावित होता है। वे लालटेन की रोशनी, मानो कीट, समझकर उसकी ओर आकर्षित होते हैं और तत्काल टकराकर घायल हो जाते हैं।
- ब्राइट लाइट ट्रैप – जतिंगा गांव में शाम को लालटेन और दीर्घकाल में बिजली की मजबूत रोशनी लगने पर पक्षी आकर्षित होकर दीवार, खंभे या जंगल से टकराकर गिरते हैं।
- मौसम और भू-चुंबकीय बदलाव – घाटी में नैचुरल लोकेशन के कारण पक्षियों का बेहद अस्थिर जैव-चुंबकीय सेंसर गड़बड़ हो जाता है।
क्या ये रोज होता है?
- हर साल़ सितंबर-नवम्बर में, खासकर अमावस्या और पूर्णिमा की रातों में होता है।
- 1–3 रातें तक संकुल अधिकांश पक्षी गिरते रहते हैं।
- ये घटना लगभग 100 वर्षों से लगातार होती आ रही है।
Jatinga Valley पर लोगों के विचार
- कुछ आदिवासी Jatinga Valley की इस घटना को “शाप” या “भूतों” का परिणाम मानते हैं।
- गांववासियों की कथा है कि “पक्षियों की आत्माओं की शापित यात्रा” की वजह से होती है यह घटना।
- संयोगवश, शाम के समय पैनिक और मंत्र-उच्चारण की आवाज़ें भी सुनकर लोग भयभीत हो जाते हैं।
Jatinga Valley पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- स्थानीय रोशनी बंद करने का आदेश – शाम 6–9 बजे वाहनों और बिजली रोशनी बंद रखना।
- Observation posts – सायं समय खाली सड़क और जंगल रखे गए।
- Satellite & GPS Study – पक्षियों की मूवमेंट में बाधा महसूस की गई।
- Behavior profiling – अमावस्या और मौसम पर पक्षियों का landing pattern, टकराव का अध्ययन हो रहा है। हालाँकि इन उपायों से भी पक्षी मौत बनी हुई है।
कितने पक्षियों की मौत होती है?
- घटना की वार्षिक संख्या बदलती है; कभी 50–100, कभी 300–500।
- कई रिपोर्ट्स में कुछ रातों में 1,000 से अधिक पक्षियों की मौत दर्ज हुई हैं।
- Extent of mortality varies, लेकिन ये भयावह और दिल दहला देने वाली घटना बनी हुई है।

ये घटना कितने पुरानी है?
- प्राचीन कथाएँ लगभग 100 साल पुरानी हैं।
- लोककथाओं में यह घटना वर्णित है— लोग इसे “घाटी में आत्महत्या” मानते हैं।
- British-era naturalist observations: पहले अंग्रेज़ खोजकर्ताओं ने भी इस घटना का उल्लेख किया था।
क्या ये प्रकृति की चमत्कारिक घटना है?
इस तरह के rare mass bird mortality events भारत सहित विश्व के अन्य हिस्सों में भी देखे गए हैं —
- बर्ड स्ट्राइक incidents (airport towers के पास)
- मौसमीय अभ्यंतर – ice storms in Minnesota (1998), Texas (2021) में पक्षी मारे गए।
- मगर जतिंगा का मामला अनूठा है, क्योंकि ये बिना मानव हस्तक्षेप के बार-बार होता है।
बचाव और भविष्य के प्रयास
- इंटरनेशनल ऑरनिथोलॉजिकल सोसाइटी, फिट्ज़बस विश्वविद्यालय, और IIT गुवाहाटी पक्षियों की GPS-based tracking कर रहे हैं।
- साथ ही स्थानीय जागरूकता अभियान: बिजली बंद समय सारिणी, लालटेन हटाना, वॉयस पार्कमेंट निर्देश।
- युवा सामाजिक समूहों ने जंगल सफाई, bird watch tours बंद रखने जैसे प्रयास किए हैं।
- वैज्ञानिकों की सुझाव: फीचर–level conservation zones बनाना चाहिए।
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क्या हम आत्महत्या घाटी बना रहे हैं?
- प्रश्नः क्या ये प्रकृति की एक दुर्लभ घटना है या हम मानव रूप से इसे बढ़ावा दे रहे हैं?
- Transmission tower lights, सड़क-सुरक्षा लालटेन, और मानव समाज की अज्ञानता इस घटना को बार-बार बढ़ा रही है।
- ये चेतावनी देती है कि हमारी दैनिक गतिविधियाँ प्रकृति को प्रभावित करती हैं; हमें जिम्मेदार बनना चाहिए।

क्या सच में पक्षी आत्महत्या करते हैं?
नहीं! ये आत्महत्या नहीं— ये नैचुरल confusion और environmental mismatch है, जिसमे प्रकाश भटका देता है, जबकि पक्षी neural navigation से ग्रस्त होते हैं।
लाईट और मौसम का मेल एक खतरनाक विष बनकर उतरता है जतिंगा घाटी में।
हमारे पास समाधान है:
- शोर-शराबा रोशनी बंद करना
- सामाजिक जागरूकता बढ़ाना
- Scientific intervention अपनाना
Jatinga Valley पर आपके क्या विचार हैं कमेंट में जरूर बताएं। लेकिन इतना जरूर है कि, सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को बहुत महत्व दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि, जहां इतनी बड़ी संख्या में पक्षी आत्महत्या करने जाते हैं। युवाओं कहना है कि, आज सिर्फ इंसान ही नहीं पक्षी भी बदलते पर्यावरण और जनसंख्या की वजह से ऐसा हो रहा है।