Prahlad Jani Biography – गुजरात के छोटे से गाँव चरदा ने भारत और अंतरराष्ट्रीय जगत को एक ऐसे जादुई संत दिया, जिसकी कहानियाँ विश्वास और विस्मय का संगम हैं—प्रह्लाद जानी। जिन्हें लोग “चूनरीवाले बाबा” के नाम से जानते थे। ये लेख है उनकी तपस्या, रहस्य और जीवन-अनुभव की कहानी, जिसमें विज्ञान और आस्था के द्वंद्व ने एक ऐसा सवाल खड़ा किया जिसे समझ पाना शायद मानव के बस से बाहर है।
आज हम जानेंगे कि, कैसे Prahlad Jani इतने साल तक बिना अन्न खाए जिंदा रहे। बड़ी बात ये है कि, वो पानी नहीं पीते थे, फिर भी उन्हें खूब पेशाब आता था। यही कारण था कि, AIIMS जैसे संस्थान को भी उन पर रिसर्च करनी पड़ी। आज Bharat Viral News कई ऐसे खुलासे करने जा रहा है। जिसे सुनकर शायद आपको यकीन भी न हो।
Prahlad Jani का बचपन
- जन्म: 13 अगस्त 1929, चरदा गाँव, गुजरात
- मृत्यु: 26 मई 2020
बचपन से ही साधना और ध्यान में लीन रहे प्रह्लाद जानी ने मात्र 11 वर्ष की उम्र में घर-बार त्याग दिया। उन्होंने जंगल, गुफा और पहाड़ों का अकेलापन चुना। कहा जाता है—“मैं अब खाना-पीना नहीं खाऊँगा, फिर भी जीवित रहूँगा।” उस समय लोग उन्हें पागल समझते थे, लेकिन समय के साथ ये दावा एक चमत्कार बन गया।
Prahlad Jani बने चूनरीवाले बाबा
गुजरात के अंबाजी मंदिर से क़रीब चरदा गाँव के जंगलों में, जानी ने एक गुफा को निवास बनाया। सफेद चूनरी और सिर पर सिंदूर उनकी पहचान थी। वो केवल नवरात्रि में ही मंदिर में दिखाई देते, बाकी समय साधना में लीन रहते। सवाल उठा—उनकी ऊर्जा कैसे बनी रहती थी? शरीर कमजोर न, स्वास्थ्य उत्तम—ये वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बन गया।
विज्ञान की परीक्षा: अटूट अध्यात्म
प्रथम अध्ययन (2003)
- तत्कालीन सरकारी रिपोर्ट संक्षेप में ये कहती हैं कि Prahlad Jani ने बिना भोजन-पानी के लंबे समय तक जीवित रहने के दावे किए।
द्वितीय अध्ययन (2010)
- बॉडीज (DIPAS – DRDO), AIIMS, और अन्य वैज्ञानिकों की टीम ने अहमदाबाद के Sterling Hospital में 20 अप्रैल से 6 मई 2010 तक शोध किया।
- 15 दिनों तक सीसीटीवी निगरानी, शौच-मूत्र, तापमान, बीपी, हृदय गति, रक्त और मल जांच पूरी तरह से की गई।
- परिणाम: एक बूंद पानी तक उन्होंने नहीं लिया।
- वैज्ञानिक निष्कर्ष: “ये अद्भुत शक्ति प्राण ऊर्जा से जुड़ी हो सकती है।”
इस प्रयोग ने साबित कर दिखाया कि कुछ यौगिक समाधि-धारा में स्थिर रहने पर इंसान लंबे समय तक भोजन-जल के बिना भी जीवित रह सकता है। DRDO का उद्देश्य था इसी प्रेरणा से आपदा-स्थिति में सैनिकों की लम्बी अवधि तक ऊर्जा-बचत और निर्वाह क्षमता बढ़ाना।
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Prahlad Jani पर वैज्ञानिक निष्कर्ष
- शरीरिक संरचना: शारीरिक रूप से सामान्य
- बंधनों का अभाव: भोजन-जल की खपत न के बराबर
- प्राण ऊर्जा: संभवतः आध्यात्मिक जीवन-संरचना
- स्वास्थ्य: बीपी, हृदय, लिवर-किडनी सामान्य स्थिति में
- आध्यात्मिक सत्य खुला: जिस अवस्था को समाधि कहा जाता है, प्रह्लाद जानी उस जीवन से संभवतः अधिक समय तक जीते रहे
जानी की आध्यात्मिक विरासत
- प्रह्लाद जानी केवल संत न थे—उनमें देवी अंबा के अनन्य भक्त होने की प्रेरणा थी।
- नवरात्रि में मंदिर में दर्शन देकर भक्तों को ऊर्जा देते थे।
- जीते-जी उनके चमत्कार और तपस्या की कहानियाँ वाकई चर्चा का विषय रहीं, खासकर जब विज्ञान ने भी उनकी सत्यता को आदरपूर्वक स्वीकारा।
प्रह्लाद जानी का अंतिम संस्मरण
मृत्यु: 26 मई 2020
आयु: 90 वर्ष
- उनके अनुयायी उन्हें देवी अम्बा का स्वरूप मानते थे।
- उन्होंने जीवन के अंतिम दिनों में भी तपस्या और समाधि का मार्ग नहीं छोड़ा।
Prahlad Jani चमत्कार या भ्रांति?
- भ्रान्ति से चमत्कार तक: विज्ञान ने जानी की जीवनधारा को गंभीरता से जांचा और निष्कर्ष निकाला कि “प्राण-शक्ति के आधार पर कुछ भी संभव है।”
- आध्यात्म और विज्ञान का संगम: इस कहनी ने इस बात को स्थापित किया कि समाधि — ग्रंथों की बात न होकर यदि जीवन-स्थिति बन जाए, तो उसे चमत्कार ही कहना चाहिए।
- प्रधान खोज: मानवशरीर सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से संचालित हो सकता है।
- प्रेरक कथा: जानी ने यह दिखाया कि आत्म-शक्ति और आस्था के माध्यम से साधना कितनी अद्भुत राह हो सकती है।
- DRDO और DRDO की पहल: स्वास्थ अध्ययन, संकट प्रबंधन, और अधिकारियों-सैनिकों के लिए समाधि आधारित जीवनशैली संभव बनाना सामान्य आपदा-युद्ध स्तिथि में ऊर्जा खपत को रोकेगा।
प्रह्लाद जानी की जीवनगाथा भावनाओं, श्रद्धा और वैज्ञानिक जिज्ञासा का ऐसा संगम है, जिसने हमें जीवन की गहराई और मानव-क्षमता की अलौकिकता से परिचित करवाया। “ना भूखा, ना प्यासा” संयम की स्थिति केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि उनका वास्तविक जीवन था—जिसने विज्ञान को भी चौंका दिया।
उनकी यह कहानी हमें ये याद दिलाती है कि आत्म-शक्ति निराशा को नहीं, आत्मा की शक्ति को सलाम करती है।