Startup Idea : आज जब लोग स्वस्थ जीवनशैली की तलाश में सुपरफूड्स की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं हरियाणा के महमूदपुर गांव से एक दंपत्ति ने मोरिंगा यानी सहजन की पत्तियों से एक सफल व्यवसाय की शुरुआत कर मिसाल कायम की है। ये कहानी है जितेंद्र मान और उनकी पत्नी सरला मान की, जिन्होंने शहरी जीवन छोड़कर गांव लौटने का साहसिक फैसला लिया और ‘हसबैंड वाइफ फार्म’ ब्रांड की नींव रखी।
कैसे शुरू हुआ मोरिंगा का Startup Idea?
साल 2017 में बेंगलुरु यात्रा के दौरान जितेंद्र को एक दोस्त से मोरिंगा की कुछ पत्तियाँ मिलीं। दिल्ली स्थित अपने घर की छत पर पहले से ही बागवानी कर रहे जितेंद्र ने इन पत्तियों को उगाना शुरू कर दिया। सरला ने इन्हें पीसकर पानी (Startup Idea) के साथ सेवन के लिए दिया। कुछ ही दिनों में जितेंद्र की तबीयत में सुधार देखने को मिला—मेटाबॉलिज्म बेहतर हुआ, थकान कम हुई और ऊर्जा में इजाफा हुआ।
इस सकारात्मक बदलाव ने दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्यों न मोरिंगा की खेती को बड़े स्तर पर किया जाए। यहीं से शुरू हुआ एक नए सफर का आरंभ। किसी ने सोचा नहीं होगा कि ये सफर एक दिन Startup Idea बन जाएगा।
खेती की शुरुआत से बना Startup Idea
TCS में 11 साल तक काम कर चुके जितेंद्र ने नौकरी छोड़ी और सरला के साथ अपने पुश्तैनी गांव लौट गए। उन्होंने 2 एकड़ जमीन पर मोरिंगा की जैविक खेती शुरू की। शुरुआत में बीज बाज़ार से खरीदे गए लेकिन गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी। इसके बाद दोनों ने मल्चिंग तकनीक अपनाई — यानी पत्तियों को मिट्टी में मिलाकर उसकी उर्वरता को बढ़ाना।
Startup Idea से लगातार दो वर्षों तक बिना किसी आमदनी के, उन्होंने मिट्टी को तैयार किया, भूजल सिंचाई प्रणाली लगाई और कुल ₹35 लाख का निजी निवेश किया। हालांकि, उनके इस फैसले पर आसपास के लोग सवाल उठाने लगे, लेकिन दोनों ने अपने विज़न से समझौता नहीं किया।
हसबैंड वाइफ फार्म ब्रांड की स्थापना
2018 के अंत में उन्होंने ‘Husband Wife Farm’ नाम से ब्रांड की शुरुआत की और मोरिंगा पाउडर व कैप्सूल पड़ोसियों और जान-पहचान वालों को बेचना शुरू किया। पहले तीन-चार वर्षों में उनका वार्षिक टर्नओवर ₹20 लाख के करीब रहा। हालांकि, मुनाफा सीमित था क्योंकि हरियाणा में श्रम लागत काफी अधिक है।
सरला बताती हैं, “हमारा उत्पाद 100% प्राकृतिक है, बिना किसी केमिकल या प्रिज़र्वेटिव के। यही वजह है कि हमारे मोरिंगा प्रोडक्ट्स का स्वाद कड़वा नहीं होता और शरीर पर सकारात्मक असर डालता है।”
हेल्थ में सुधार, रोजगार में विस्तार
ग्राहकों से मिलने वाली प्रतिक्रिया इस ब्रांड की सबसे बड़ी ताकत रही है। सरला के अनुसार, मोरिंगा न केवल आर्थराइटिस, सर्वाइकल ब्लॉकेज और मांसपेशियों की समस्याओं में सहायक है, बल्कि इसमें कैंसर-रोधी गुण भी पाए जाते हैं।
इस उद्यम के माध्यम से अब वे 20 ग्रामीण महिलाओं को स्थायी रोजगार भी दे रहे हैं, जो मोरिंगा की पत्तियों को हाथ से तोड़ती, सुखाती और उन्हें मूल्यवर्धित उत्पादों में बदलती हैं।
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अब वैश्विक पहचान की ओर
आज उनके ग्राहक केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। अमेरिका और यूएई जैसे देशों से भी लोग उनके उत्पाद वेबसाइट और बल्क ऑर्डर के ज़रिए मंगवा रहे हैं। हालांकि उनकी कीमत बाज़ार के अन्य ब्रांड्स से थोड़ी अधिक है, लेकिन गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं किया जाता।
FY24 में उनका टर्नओवर ₹30 लाख रहा, जबकि FY25 में यह घटकर ₹21 लाख पर आ गया। मौसम की मार के चलते उत्पादन पर असर पड़ता है, जिससे कारोबार में उतार-चढ़ाव बना रहता है।
सरला बताती हैं, “मोरिंगा गर्मियों का पौधा है। सर्दियों में उत्पादन शून्य हो जाता है। खेती उतनी आसान नहीं जितनी लोग समझते हैं। लेकिन छह साल की मेहनत के बाद अब जाकर हमने अपनी खुद की कार खरीदी है। हम लोगों को भ्रम में नहीं डालना चाहते कि ये कोई फटाफट अमीर बनने की योजना है।”
अब ये जोड़ा ग्रीनहाउस तकनीक पर आधारित नया सेटअप तैयार कर रहा है ताकि पूरे साल उत्पादन बना रहे। साथ ही, जल्द ही वे अपने उत्पादों को अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर भी लिस्ट करने की तैयारी में हैं। भविष्य में वे हल्दी पाउडर जैसे अन्य 100% शुद्ध ऑर्गेनिक उत्पाद भी लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।
सरला और जितेंद्र मान की कहानी ये बताती है कि सही सोच, निरंतर प्रयास और प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाकर न केवल स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है, बल्कि एक सफल और टिकाऊ व्यवसाय भी खड़ा किया जा सकता है। ‘हसबैंड वाइफ फार्म’ आज न केवल एक ब्रांड है, बल्कि एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो ग्रामीण भारत में संभावनाएं तलाश रहे हैं।