Shimla Agreement 1972 : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने गुरुवार (24 अप्रैल) को 1972 के शिमला समझौते को निलंबित करने की घोषणा की। ये समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण शांति समझौता था। पाकिस्तान की धमकी के बाद सोशल मीडिया पर लोग Shimla Agreement 1972 की चर्चा कर रहे हैं। जहां कुछ लोगों का दावा है कि, Shimla Agreement 1972 के निलंबन से भारत को नुकसान होगा। तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका दावा है कि Shimla Agreement 1972 सिर्फ पाकिस्तान के फायदे का समझौता है।
शिमला समझौता क्या है?
2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित शिमला समझौते का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना और संबंधों को सामान्य बनाना था। 1971 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) स्वतंत्र हो गया था। इस संधि पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे।
Shimla Agreement 1972 के प्रमुख प्रावधान
1. द्विपक्षीय वार्ता द्वारा विवादों का समाधान
– दोनों देशों ने तय किया कि वे किसी भी विवाद को बिना तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के आपसी बातचीत से सुलझाएंगे।
– भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि कश्मीर मुद्दा केवल भारत और पाकिस्तान के बीच ही सुलझाया जाना चाहिए।
2. नियंत्रण रेखा (LoC) का निर्धारण
– 1971 के युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा (LoC) में बदल दिया गया।
– दोनों देशों ने वादा किया कि वे एकतरफा रूप से LoC में कोई बदलाव नहीं करेंगे।
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3. युद्ध में जीती गई ज़मीन की वापसी
– भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान से जीती गई 13,000 वर्ग किमी ज़मीन वापस की, लेकिन कुछ रणनीतिक क्षेत्र (जैसे चोरबत घाटी) अपने पास रखे।
4. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का पालन
– दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का वादा किया।
5. आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
– दोनों देशों ने एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देने का फैसला किया।
पाकिस्तान ने शिमला समझौता क्यों निलंबित किया?
पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित करने का निर्णय भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने (अगस्त 2019) के बाद लिया है। पाकिस्तान का मानना है कि भारत ने इस समझौते का उल्लंघन किया है।
– पाकिस्तान अब कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाना चाहता है और संयुक्त राष्ट्र, OIC या चीन जैसे देशों से मदद मांग सकता है।
– ये कदम भारत-पाकिस्तान संबंधों में नई तनाव पैदा कर सकता है।
शिमला समझौता रद्द करने से भारत को क्या नुकसान होगा?
1. कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण
– अब पाकिस्तान कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र या अन्य वैश्विक मंचों पर उठा सकता है, जिससे भारत को कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
2. सीमा पर तनाव बढ़ सकता है
– समझौता निलंबित होने से LoC पर युद्धविराम समझौतों का उल्लंघन हो सकता है, जिससे सीमा पर हिंसा बढ़ सकती है।
3. पाकिस्तान का आतंकवाद को समर्थन बढ़ सकता है
– पाकिस्तान अब आतंकी गुटों को और समर्थन दे सकता है, जिससे जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति खराब हो सकती है।
4. भारत की कूटनीतिक रणनीति पर प्रभाव
– भारत ने हमेशा कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाने पर जोर दिया है, लेकिन पाकिस्तान अब इसे बहुपक्षीय मंचों पर ले जाना चाहेगा।
पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को निलंबित करना भारत-पाक संबंधों में एक नया संकट पैदा कर सकता है। भारत को अब कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर सतर्क रहने की जरूरत है। अगर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने में सफल होता है, तो भारत को वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
इसके अलावा, सीमा सुरक्षा और आतंकवाद नियंत्रण पर भारत को और मजबूत रणनीति बनानी होगी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी पाकिस्तान के इस कदम पर सख्त रुख अपनाना चाहिए, क्योंकि ये क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा हो सकता है।
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