Sant Goswami Tulsidas Biography : श्री हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध भजन है, जिसमें 40 चौपाइयों (चालीस छंदों) के माध्यम से भगवान हनुमान की जय-गाथा गायी जाती है। ये शास्त्रीय भजन मात्र नहीं, बल्कि भक्तों के दिलों में भय, कष्ट और बाधाओं से राहत दिलाने वाला धार्मिक शास्त्र भी है। हनुमान चालीसा की एक-एक पंक्ति में भगवान हनुमान की महिमा, पराक्रम, भक्ति और भक्तों के दुखों को हरने की क्षमता का वर्णन मिलता है।
इसे पढ़ने से समस्त बाधाएं दूर होती हैं, एकाग्रता बढ़ती है, मन को शांति मिलती है और भौतिक–आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति होती है। आज भी गीता प्रेस में सबसे ज्यादा संत तुलसीदास की रचनाएं ही खरीदी जाती हैं। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर Shree Hanuman Chalisa को लिखा किसने था ? तो चलिए Bharat Viral News आपको संत गोस्वामी तुलसीदास से मिलवाता है।
‘हनुमान चालीसा’ के लेखक – Sant Goswami Tulsidas
लंका विजय और रामचरितमानस जैसे महान उपक्रमों के रचयिता संत गोसाईं तुलसीदास ने ये हनुमान चालीसा रची थी। तुलसीदास जी ने 16वीं सदी (1520–1623 ई.) में ब्रज भाषा में लिखकर भक्ति आंदोलन को नया आयाम दिया। वे उत्तर भारत के कवि-संत थे, जिन्हें भगवान राम का परम भक्त माना जाता है। उन्होंने रामचरितमानस (Ramcharitmanas) में भगवान राम की जीवनी को सर्वसुलभ और लोकप्रिय भाषा में संजोया, जिससे जन-जन में राम भक्ति का आनन्द मिला।
Sant Goswami Tulsidas का जीवन
संत तुलसीदास का जन्म
- तुलसीदास का जन्म 1520 ई. में राजा तुलसी द्वारा स्थापित अयोध्या के पास हुआ था।
- बुद्धि–गुण, दयालुता और ज्ञान में उन्होंने बचपन से ही प्रतिष्ठा पायी।
संत तुलसीदास की शिक्षा
- संस्कृत के साथ-साथ ब्रजभाषा में निपुण तुलसीदास ने रामभक्ति को चरम पर पहुंचाया।
- उन्होंने जीवनकाल में अनेक तीर्थ-यात्राएँ कीं और रामभक्ति आंदोलन को जन-मनोकांक्षी भाषा में फैलाया।
संत तुलसीदास की रचनाएं
- रामचरितमानस, दोहावली, कवितांस, दरगाह बानी जैसी रचनाएँ उन्होंने लिखीं।
- ये रचनाएँ सामाजिक समरसता, विलवाणी और मानवता के आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
हनुमान चालीसा— रचना के पीछे की दैवी प्रेरणा
कहते हैं कि Sant Goswami Tulsidas की लेखन-शक्ति भगवान राम और हनुमान जी की भक्ति से प्रेरित थी। दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान, उन्होंने ऋषि पतंजलि के आश्रम में रात्रि जागरण करते हुए हनुमान जी का ध्यान किया। एक रात शिव-पार्वती का दिव्य दर्शन हुआ, जिसमें पार्वती ने उन्हें हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा दी। उसके बाद उन्होंने ये महाकाव्य स्वरूप भजन लिखा।

हनुमान चालीसा का साहित्यिक-धार्मिक महत्व
- भक्ति अनुग्रह – हनुमान जी भक्तों की रक्षा करते हैं।
- ध्यात्मिक शक्ति – भय, काल-संकट, रोग-पीड़ा दूर होते हैं।
- भाषा और कविता – मात्र 40 चौपाइयों में भावों की गहराई समाई।
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन – मन, वचन, कर्म की संतुल शक्ति बढ़ती है।
- समाज-उत्थान – सुरक्षा, नैतिकता और सकारात्मक ऊर्जा का माध्यम है।
हनुमान चालीसा पाठ क्यों करते हैं?
- ज़िंदगी की मुश्किल घड़ियों में पाठ करने से मन को स्थिरता मिलती है।
- परीक्षा, इंटरव्यू, दुर्घटना जैसी स्थितियों में विश्वास बढ़ता है।
- तेज़ी से मन और इन्द्रिय संयम प्राप्त होता है।
- साधु-संत, शिक्षक सभी इसे सकारात्मक शक्ति मानते हैं।
Sant Goswami Tulsidas की अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ
- रामचरितमानस – मूल रामकथा सरल भाषा में।
- दोहावली – लघु दोहा रचनाएँ, जीवन के संदेश।
- कवितावली – भक्ति-काव्य संग्रह।
- हिन्दी कविता और गीत – सप्तसती, विनय पत्रिका आदि।
संत तुलसीदास का निधन कैसे हुआ?
Sant Goswami Tulsidas का निधन चैत्र मास की तृतीया तिथि को हुआ था, जिसे संत तुलसीदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनका अंतिम समय वाराणसी (काशी) में बीता और वहीं अस्सी घाट पर उन्होंने अपना शरीर त्यागा। कहा जाता है कि अपने अंतिम दिनों में तुलसीदास जी पूरी तरह भक्ति और ध्यान में लीन हो गए थे। उनकी मृत्यु शांतिपूर्वक और राम नाम का जाप करते हुए हुई थी। ये वर्ष 1623 ईस्वी माना जाता है।
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क्या तुलसीदास ने हनुमान जी के दर्शन किए थे?
हां, तुलसीदास ने हनुमान जी के साक्षात दर्शन किए थे, ये लोकमान्य और धार्मिक परंपराओं में प्रचलित है। कहा जाता है कि जब तुलसीदास जी राम कथा का प्रचार कर रहे थे, तब हनुमान जी वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उनके पास आए। हनुमान जी ने तुलसीदास को भगवान श्रीराम के दर्शन कराने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद चित्रकूट में Sant Goswami Tulsidas को भगवान राम और लक्ष्मण के साक्षात दर्शन हुए। कहा जाता है कि, इसी घटना के बाद उन्हें “हनुमान चालीसा” की रचना का प्रेरणा स्रोत मानी जाती है।

तुलसीदास ने शिक्षा कहां से प्राप्त की?
Sant Goswami Tulsidas का बाल्यकाल अत्यंत दुखद था, उन्हें माता-पिता ने जन्म के तुरंत बाद त्याग दिया था।
बचपन में उनका पालन-पोषण एक गृहस्थ महिला चुनिया ने किया।
इसके बाद गोसाईं नरहरिदास नाम के संत ने उन्हें गोद लिया और शिक्षा दी।
तुलसीदास ने शिक्षा काशी (वाराणसी) में प्राप्त की, जहाँ उन्होंने:
- संस्कृत व्याकरण
- वेद
- पुराण
- धर्मशास्त्र
- नीति और दर्शन
का अध्ययन किया।
इस दौरान वे महर्षि वल्मीकि की रामायण (Maharishi Valmiki Ramayan) से गहराई से प्रभावित हुए।
तुलसीदास का अकबर से क्या विवाद हुआ था?
ये प्रसंग इतिहास और किंवदंतियों में विभिन्न रूपों में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार मुगल सम्राट अकबर (Akbar) ने Sant Goswami Tulsidas को अपने दरबार में बुलवाया, क्योंकि तुलसीदास की ख्याति बहुत फैल चुकी थी।
तुलसीदास ने कहा: “मैं केवल श्रीराम की कथा कहता हूं, किसी राजा की नहीं।”
इस बात से अकबर नाराज हुआ और उन्हें कारागार में डाल दिया गया।
कारावास में तुलसीदास ने हनुमान चालीसा का पाठ और राम भक्ति से जुड़ी रचनाएं कीं।
कहा जाता है कि अकबर के राज्य में भयंकर बंदर उत्पात मचाने लगे, जिससे घबराकर अकबर ने तुलसीदास को छोड़ा और क्षमा मांगी।
Sant Goswami Tulsidas ने जो लिखा वो आज तक सनातन धर्म में पढ़ा जाता है। श्री हनुमान चालीसा को आज भी कई करोड़ लोग हर रोज पाठ करते हैं। कहते हैं कि, 90 फीसदी से ज्यादा हिंदू सप्ताह में कम से कम एक बार जरूर पढ़ते हैं। अगर आपने भी कभी न कभी तुलसीदास की कोई रचना पढ़ी है तो कमेंट में जरूर बताएं।