Sonam Wangchuk Ladakh Protest : लद्दाख इस समय देश की सुर्खियों में है, क्योंकि चल रहे Ladakh के Gen Z Protest ने पूरे भारत का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। हालांकि मीडिया इसे बेरोजगारी और स्थानीय समस्याओं से जोड़कर दिखा रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही सामने आ रही है। आज Bharat Viral News आपको इस प्रदर्शन का वो सच बताने जा रहे है। जिसे सुनकर सिर्फ आपके ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से लेकर चीन और फिर चीन से लेकर अमेरिका तक हंगामा मचना तय है।
दरअसल, ये कहानी है एक ऐसे पर्यावरणविद की, जिसे (Sonam Wangchuk) लोग गांधीवादी सोच का मानते हैं, लेकिन सच बिल्कुल उल्टा है। ये व्यक्ति और उसकी अमेरिकी पत्नी पिछले 32 सालों से भारत के सबसे संवेदनशील सीमावर्ती इलाके में रह रहे हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों एक अमेरिकी महिला Rebecca Norman ने भारतीय नागरिकता लेने से साफ इंकार कर दिया।
उसने वीज़ा की लंबी अवधि पर लगातार भारत में रहते हुए लद्दाख की राजनीति और समाज में पैठ बनाई है। लेकिन धीरे-धीरे परतें खुलती गईं, और सामने आया कि ये सिर्फ पर्यावरण या शिक्षा की कहानी बिल्कुल नहीं है। असल में ये एक सोची-समझी विदेशी खुफिया एजेंसियों की चाल है, जिसका लक्ष्य भारत की एकता और अखंडता को तोड़ना है।
Ladakh Protest और बेरोजगारी का झूठा नैरेटिव
सोनम वांगचुक ने हाल ही में एक बयान दिया कि आज का Ladakh protest दरअसल Gen Z का गुस्सा है। उन्होंने बेरोजगारी को इसका कारण बताया, और दावा किया कि युवाओं के पास विकल्प नहीं होने के कारण वे सड़क पर उतरे। लेकिन यही वही व्यक्ति है, जिसने 2019 में Yale Environment 360 नामक विदेशी पत्रिका को एक इंटरव्यू दिया था।
उस इंटरव्यू में उसने लद्दाख में इंडस्ट्री, होटल और माइनिंग प्रोजेक्ट्स के खिलाफ बड़ा बयान दिया था। उसका कहना था कि अगर यहां बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट्स आए, तो लद्दाख का पर्यावरण और पारंपरिक संस्कृति नष्ट हो जाएगी। ये सब बातें रिकॉर्ड पर हैं, और इन्हीं को आधार बनाकर उसने सरकार की निवेश योजनाओं का लगातार विरोध किया।
अब अचानक यही व्यक्ति युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर जनता को गुमराह कर रहा है। क्या ये दोहरा चरित्र नहीं है, जब एक ओर रोजगार रोकने की बात हो और दूसरी ओर बेरोजगारी पर आंसू बहाना। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि, आखिर ये आदमी ऐसा क्यों कर रहा है। तो चलिए इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
VERY SAD EVENTS IN LEH
My message of peaceful path failed today. I appeal to youth to please stop this nonsense. This only damages our cause.#LadakhAnshan pic.twitter.com/CzTNHoUkoC— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 24, 2025
चीन से Sonam Wangchuk की यारी ?
विदेशी जानकारों की मानें तो वांगचुक की भारत के दुश्मन देशों से गहरे संबंध हैं। जब वो पर्यावरण के नाम पर लद्दाख में सड़क, निर्माण कार्य का पर्यावरण के नाम पर विरोध करते हैं। तो वो ये करके चीन का प्यारा बनने की कोशिश करते हैं। लोगों का कहना है कि, अगर लद्दाख में भारत अच्छी सड़कें और अच्छा निर्माण करेगी। तो इससे चीन को झटका लगेगा और उसकी भारत के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का जवाब देने में आसानी होगी।
वहीं वांगचुक बेरोजगारी के नाम पर लद्दाख के युवाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि भारत सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा सके। ऐसा करके वो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दुश्मनों के दोस्त बनने की कोशिश कर रहे हैं। विदेशी जानकार मानते हैं कि, जो तस्वीरें इन दिनों वांगचुक की सोशल मीडिया पर सामने आ रही हैं, वो उनकी असली सच बताने के लिए काफी हैं।
HIAL: शिक्षा का सपना या करोड़ों का घोटाला?
2015 में सोनम वांगचुक ने HIAL (Himalayan Institute of Alternative Learning) की नींव रखने का दावा किया। उसने कहा कि ये संस्थान लद्दाख के छात्रों और युवाओं के लिए एक नई शिक्षा प्रणाली लेकर आएगा। LAHDC (लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद) ने भी उस पर भरोसा करके फयांग गांव में 135 एकड़ जमीन लीज पर दी। जमीन लेने की शर्त थी कि दो साल के अंदर कॉलेज की इमारत बनाकर शिक्षा कार्य शुरू किया जाएगा।
लेकिन सात साल बीत गए, और न तो कोई कॉलेज बना, न ही कोई वैध शिक्षा प्रोग्राम शुरू किया गया। इसके बजाय जमीन का प्रीमियम और बाकी बकाया राशि 37 करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जो कभी जमा नहीं की गई। सरकार को अंततः अगस्त 2025 में उस जमीन को रद्द करना पड़ा, जिससे बड़ा घोटाला उजागर हो गया। अब साफ है कि ये Ladakh protest सिर्फ अपने निजी हित और भ्रष्टाचार को बचाने का प्रयास है।
विदेशी फंडिंग से जुड़े चौंकाने वाले राज
Ladakh protest सिर्फ बेरोजगारी का गुस्सा नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़े नेटवर्क का गहरा षड्यंत्र छिपा हुआ है। सोनम वांगचुक की अमेरिकी पत्नी Rebecca Norman 32 सालों से लद्दाख में रह रही है लेकिन कभी नागरिकता नहीं ली। ये सवाल बड़ा है कि आखिर क्यों उसने सिर्फ लंबे वीज़ा पर भारत में रहना पसंद किया और नियमों को दरकिनार किया।
असल में ये महिला foreign funding network और NGO ecosystem के जरिए भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में लगातार दखल देती रही है। लद्दाख जैसे सीमाई क्षेत्र में किसी विदेशी नागरिक की लंबे समय तक मौजूदगी पहले से ही सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंताजनक है। लेकिन इस मामले में प्रशासन और सरकार की लापरवाही ने इस नेटवर्क को और मजबूत बनाने का रास्ता खोल दिया।
Foreign Funding और NGO Game
HIAL की सबसे बड़ी ताकत उसका फंडिंग मॉडल बताया गया, जिसमें crowd funding, CSR fund, foreign award money और government grants शामिल थे। लेकिन कभी भी इन पैसों का पूरा हिसाब-किताब सामने नहीं आया, जिससे पूरा Ladakh protest संदिग्ध बन गया है।
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विदेशी अवॉर्ड से मिले करोड़ों रुपये का इस्तेमाल शिक्षा में नहीं हुआ, बल्कि प्रचार और निजी खर्चों में गुपचुप तरीके से किया गया। NGO ecosystem में बैठे कुछ लोग इस पूरे network को मजबूत करने और सरकार की नीतियों का विरोध करने में मदद कर रहे थे।
यही वजह है कि आज Ladakh protest के जरिए युवाओं को भड़काया जा रहा है, जबकि असल मुद्दा भ्रष्टाचार और फंडिंग है। फंडिंग से जुड़ी कई international NGOs और western agencies का नाम खुलकर सामने आने लगा है, जिससे मामला और गंभीर हो गया।
Pakistan और Anti-India Links
अब बात सिर्फ foreign funding की नहीं है, बल्कि इस पूरे मामले में पाकिस्तान की भूमिका भी सामने आ रही है। खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार कुछ meetings में पाकिस्तान से जुड़े NGOs ने भी HIAL और Ladakh protest को समर्थन दिया। इसका मकसद बिल्कुल साफ है – भारत की सीमावर्ती स्थिति को कमजोर करना और स्थानीय लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काना।
Rebecca Norman और कुछ western NGOs के संपर्क भी संदिग्ध पाए गए, जो इस narrative को international मंचों पर ले जाते हैं। आज जिस Ladakh protest को बेरोजगारी का गुस्सा कहा जा रहा है, वह असल में अंतरराष्ट्रीय खेल का एक हिस्सा है। विदेशी मीडिया लगातार इस narrative को amplify कर रहा है ताकि भारत की global image को नुकसान पहुंचाया जा सके।
Protest और Narrative Building
किसी भी movement को international बनाने के लिए सबसे पहला हथियार narrative building होता है, और यही Ladakh protest में दिखाई दे रहा है। सोनम वांगचुक खुद को भूखा अनशन करने वाला saint दिखाते हैं, लेकिन असलियत उससे बिल्कुल अलग है। उनके video statements वायरल किए जाते हैं, international media houses उन्हें environmental hero बताते हैं और युवा गुमराह होते हैं।
लेकिन ground reality यह है कि करोड़ों रुपये का हिसाब गायब है और कोई valid education institute खड़ा नहीं किया गया। युवाओं की genuine समस्याओं को इस तरह के foreign backed leaders अपने personal और political agenda के लिए exploit कर रहे हैं। अगर यह सच देशभर के लोगों तक पहुंचे, तो Ladakh protest की पूरी सच्चाई सामने आ जाएगी और narrative टूट जाएगा।