Muslim Women Khatna – अक्सर सवाल उठता है कि, मुस्लिम महिलाओं का खतना कैसे होता है ? और आखिर महिलाओं को खतना क्यों कराना पड़ता है। तो आज Bharat Viral News पर खतना से जुड़ी हर जानकारी आप तक पहुंचने वाली है। खतना एक धार्मिक और पारंपरिक प्रक्रिया है जिसमें जननांग के ऊपरी हिस्से की त्वचा काटी जाती है। आमतौर पर ये प्रक्रिया बचपन में की जाती है, लेकिन कई मामलों में बड़े होने पर भी खतना कराई जाती है।
दुनिया के अलग-अलग देशों में खतना की परंपरा अलग-अलग तरीके से मानी जाती है और उसका धार्मिक महत्व होता है। हालांकि, आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि खतना का स्वास्थ्य पर प्रभाव हमेशा सकारात्मक नहीं होता। इसीलिए आजकल खतना को लेकर व्यापक बहस और सवाल दुनिया भर के समाज में उठने लगे हैं।
मुस्लिम महिलाओं की खतना कैसे होती है?
मुस्लिम महिलाओं की खतना को “फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन” या “FGM” भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में महिलाओं के संवेदनशील अंग का एक छोटा हिस्सा काट दिया जाता है। माना जाता है कि ये परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और खासकर कुछ मुस्लिम समुदायों में ज्यादा प्रचलित है।
महिला खतना आमतौर पर छोटी उम्र में की जाती है और यह बेहद दर्दनाक और जोखिम भरा अनुभव माना जाता है। डॉक्टरों के अनुसार महिला खतना करने से शरीर और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर गहरा असर पड़ता है।
खतना करने से महिलाओं को नुकसान
महिलाओं की खतना करने से उन्हें कई गंभीर शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसमें सबसे आम समस्या संक्रमण, लगातार दर्द, और प्रसव के समय जटिलताएं मानी जाती हैं। कई बार खतना से महिलाओं की यौन स्वास्थ्य और उनकी प्राकृतिक क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है।
इसके अलावा, मानसिक आघात भी होता है क्योंकि कम उम्र में ये प्रक्रिया बेहद दर्दनाक तरीके से की जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी महिला खतना को खतरनाक और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घोषित किया है।
खतना कितना खतरनाक है?
खतना के खतरों को अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके बाद गंभीर मेडिकल समस्याएं सामने आती हैं। सबसे पहले संक्रमण का खतरा होता है क्योंकि ये प्रक्रिया असुरक्षित परिस्थितियों में की जाती है। इसके साथ-साथ खतना के बाद महिलाओं में अधिक खून बहने की समस्या आम तौर पर देखने को मिलती है।
कई मामलों में महिलाओं को बार-बार पेशाब करने में कठिनाई और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी झेलनी पड़ती हैं। सबसे बड़ा खतरा ये है कि महिला खतना उनकी प्रजनन क्षमता और निजी जीवन दोनों को प्रभावित कर देती है।
कुरान में खतना के लिए क्या कहा गया है?
कुरान में महिला खतना का सीधा उल्लेख नहीं मिलता, हालांकि पुरुष खतना का जिक्र मौजूद है। इस्लामी विद्वानों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद हैं कि महिला खतना धार्मिक रूप से अनिवार्य है या नहीं। कुछ इस्लामी विद्वान मानते हैं कि यह केवल परंपरा है, जबकि कुछ इसे धर्म से जुड़ी प्रथा मानते हैं।
कुरान के कई विशेषज्ञ मानते हैं कि महिला खतना का आदेश नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक परंपरा है। इसीलिए कई मुस्लिम देश अब महिला खतना पर प्रतिबंध लगाने या इसे रोकने के लिए कानून बना रहे हैं।
खतना पर धार्मिक बहस और आधुनिक दृष्टिकोण
धार्मिक मान्यताओं के आधार पर खतना को लंबे समय से सही ठहराया गया है, लेकिन विज्ञान इसे खतरनाक मानता है। आधुनिक चिकित्सा बताती है कि खतना महिलाओं के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टिकोण से हानिकारक हो सकता है।
हालांकि, कुछ समाजों में इसे धार्मिक पहचान और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। विश्व स्तर पर इस विषय को लेकर जागरूकता अभियान चल रहे हैं ताकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसके बावजूद, परंपरा और धर्म के नाम पर आज भी लाखों महिलाओं को खतना झेलना पड़ रहा है।
खतना पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का रुख
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिला खतना को एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन बताया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार यह प्रक्रिया महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी महिला खतना को खत्म करने के लिए कई देशों से सख्त कदम उठाने की अपील की है।
आज भी अफ्रीका और एशिया के कई हिस्सों में महिला खतना की प्रथा जारी है। भारत में भी कुछ विशेष समुदायों में महिला खतना की परंपरा आज भी मौजूद है।
खतना को लेकर कानूनी पहल
कई देशों ने महिला खतना को रोकने के लिए कानून बनाए हैं और इसे अपराध घोषित किया है। मिस्र, सूडान, सोमालिया जैसे देशों में महिला खतना का प्रतिशत बहुत अधिक है। भारत में भी इस प्रथा को खत्म करने के लिए कई महिला संगठन लगातार आवाज उठा रहे हैं।
2017 में सुप्रीम कोर्ट में भी महिला खतना के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रथा महिलाओं की स्वतंत्रता और स्वास्थ्य के खिलाफ है।
खतना पर महिलाओं की राय
महिला अधिकार कार्यकर्ता कहती हैं कि खतना उनकी स्वतंत्रता और निजी जीवन पर सीधा हमला है। कई महिलाएं जिन्होंने खतना झेला है, वे इसे अपनी सबसे दर्दनाक याद बताती हैं। उनका कहना है कि ये प्रक्रिया उनके स्वास्थ्य और आत्मसम्मान दोनों को चोट पहुंचाती है। कुछ महिलाएं कहती हैं कि परंपरा के नाम पर यह उनके साथ अन्याय है। इसीलिए आज की नई पीढ़ी इस परंपरा को खत्म करने के लिए खुलकर सामने आ रही है।
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खतना पर समाज में जागरूकता
आज सोशल मीडिया और न्यूज़ प्लेटफॉर्म के जरिए खतना के नुकसान पर व्यापक चर्चा हो रही है।
महिला संगठन लगातार अभियान चलाकर लोगों को खतना की वास्तविकता से अवगत करा रहे हैं।
इसके साथ ही, डॉक्टर और विशेषज्ञ भी खतना के खतरों के बारे में खुलकर बता रहे हैं।
कई मुस्लिम विद्वान भी कहते हैं कि महिला खतना इस्लाम की अनिवार्य शर्त नहीं है।
इसलिए अब समाज में धीरे-धीरे खतना को लेकर सोच बदल रही है और इसे रोकने की पहल हो रही है।