Karva Chauth एक बहुत ही पवित्र और पारंपरिक Hindu Festival हिंदू त्योहार है, जिसे हर साल सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाती हैं और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद जब चाँद निकलता है, तब पूजा करके और पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत तोड़ा जाता है।
करवा चौथ का ये व्रत केवल धार्मिक नहीं बल्कि भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक भी माना जाता है। हर पत्नी इस दिन पूरे श्रद्धा, प्रेम और समर्पण के साथ अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती है। ज्यादातर लोग करवा चौथ के बारे में सिर्फ इतना ही जानते हैं। लेकिन आज Bharat Viral News आपको विस्तार से इसकी जानकारी देने जा रहा है।
करवा चौथ कब है 2025 ? ( Karva Chauth Kab Hai )
हर साल की तरह 2025 में भी करवा चौथ का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा। 2025 में करवा चौथ की तिथि 10 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन चतुर्थी तिथि सुबह 6 बजे के आस-पास शुरू होकर रात में चाँद निकलने के बाद तक रहेगी। चाँद निकलने का समय शहर के अनुसार अलग-अलग होता है, लेकिन औसतन रात 8:15 बजे के आसपास चाँद देखा जाएगा।
महिलाएँ पूरे दिन बिना जल और अन्न के व्रत रखती हैं और चाँद निकलते ही पूजा करती हैं। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:58 बजे से 7:11 बजे तक का रहेगा, इसलिए इस समय के अंदर पूजा करना शुभ माना गया है। करवा चौथ कब है 2025, यह सवाल हर साल सुहागिन महिलाओं के मन में सबसे पहले उठता है, क्योंकि यह दिन उनके जीवन का सबसे खास अवसर होता है।
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है ?
करवा चौथ का मुख्य उद्देश्य पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और दांपत्य जीवन की सुख-समृद्धि की कामना करना है। प्राचीन समय से ही महिलाएँ अपने पतियों की रक्षा के लिए इस दिन उपवास रखती थीं। ये व्रत केवल धार्मिक महत्व नहीं रखता बल्कि इसमें आत्मसंयम, श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत संगम देखा जाता है। महिलाएँ इस दिन श्रृंगार करती हैं, पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और पूरे दिन खुद को संयमित रखती हैं।
इससे मानसिक शांति, विश्वास और आत्मबल में वृद्धि होती है। करवा चौथ को स्त्रियों की शक्ति और प्रेम का प्रतीक भी कहा जाता है। आजकल बहुत से पति भी इस दिन अपनी पत्नी के साथ व्रत रखते हैं, ताकि उनके रिश्ते में समानता और प्रेम बना रहे। ये त्योहार प्रेम, त्याग और समर्पण का सबसे सुंदर उदाहरण माना जाता है।
करवा चौथ की कहानी ( Karva Chauth Katha )
करवा चौथ की कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं —
वीरवती की कहानी
बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक रानी थी जो अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। वो पहली बार शादी के बाद करवा चौथ का व्रत रख रही थी। पूरा दिन बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखते हुए वो कमजोर हो गई। भाइयों ने अपनी बहन की हालत देखकर धोखे से पेड़ के पीछे दीपक रखकर कहा, “देखो बहन, चाँद निकल आया।”
वीरवती ने बिना चाँद देखे ही व्रत तोड़ दिया।
कुछ ही देर बाद उसके पति की तबीयत बिगड़ गई और वो बेहोश हो गया। रानी को अपनी गलती का एहसास हुआ, उसने भगवान से प्रार्थना की और अगले साल पूरे नियम से व्रत रखा। उसकी सच्ची श्रद्धा से उसका पति पुनः जीवित हो गया। तब से कहा जाता है कि जो भी महिला सच्चे मन से यह व्रत रखती है, उसके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।
करवा और मगरमच्छ की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार करवा नाम की एक सती स्त्री थी। उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, तभी मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। करवा ने अपने सूत के धागे से मगरमच्छ को बाँध दिया और यमराज से प्रार्थना की कि उसके पति की रक्षा करें।
यमराज ने पहले मना किया, तो करवा ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो मैं आपको श्राप दूँगी। यमराज डर गए और उसके पति को जीवनदान दे दिया। तब से करवा की भक्ति के कारण ये व्रत करवा चौथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
सवित्री और सत्यवान की कथा
कहा जाता है कि सवित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु से यमराज से संघर्ष कर उसे वापस जीवित कर दिया था। इसलिए सवित्री की भक्ति को भी करवा चौथ के समान ही पूजनीय माना गया। इन कहानियों से ये स्पष्ट होता है कि करवा चौथ केवल धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि स्त्रियों की आस्था, निष्ठा और प्रेम की अद्भुत मिसाल है।
करवा चौथ कब से मनाया जाता है ?
करवा चौथ का इतिहास बहुत प्राचीन है, ये त्योहार हजारों साल पुराना बताया जाता है। ‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का छोटा घड़ा और ‘चौथ’ का मतलब है चतुर्थी यानी चौथी तिथि। कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को ये त्योहार मनाया जाता है।
पहले ये त्योहार उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था। धीरे-धीरे ये परंपरा देशभर में फैल गई और आज यह पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि पुराने समय में जब पति युद्ध या व्यापारिक यात्राओं पर जाते थे, तो महिलाएँ उनकी सुरक्षा की कामना करती थीं।
वे अपने पड़ोस की महिलाओं से बहनापा निभाती थीं और “करवा” यानी मिट्टी के घड़े में जल भरकर पूजा करती थीं। इसी वजह से इसे करवा चौथ कहा गया। समय के साथ ये परंपरा पति की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाले व्रत में बदल गई।
करवा चौथ का इतिहास क्या है ?
करवा चौथ का इतिहास भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल में इसे “करक चतुर्थी” कहा जाता था। ये पर्व कृषि आधारित समाज में महिलाओं के पारस्परिक सहयोग और एकता का प्रतीक था। महिलाएँ इस दिन एक साथ पूजा करती थीं और अपने पति की लंबी आयु के साथ अपने परिवार की समृद्धि की भी कामना करती थीं।
महाभारत काल में भी ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं जब महिलाएँ व्रत रखकर अपने पतियों की रक्षा के लिए प्रार्थना करती थीं। राजाओं और रानियों के समय में भी यह परंपरा जारी रही, जो बाद में पूरे समाज में फैल गई। इतिहासकारों के अनुसार, करवा चौथ स्त्रियों के सामाजिक एकजुटता का पर्व था, जो अब दांपत्य प्रेम का प्रतीक बन चुका है।
करवा चौथ का आयोजन और रीति-रिवाज
करवा चौथ के दिन महिलाओं की तैयारियाँ एक दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। सुबह सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ खाने की परंपरा होती है, जिसे सास अपनी बहू को देती है। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे और हल्का भोजन होता है, जिससे दिनभर ऊर्जा बनी रहती है।
महिलाएँ स्नान करके नए कपड़े पहनती हैं, माथे पर सिंदूर लगाती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पूरे श्रृंगार के साथ पूजा के लिए तैयार होती हैं। दिनभर निर्जला व्रत रखा जाता है — न जल, न भोजन। शाम को करवा चौथ की कथा सुनी जाती है और करवा यानी मिट्टी के घड़े की पूजा की जाती है।
रात में चाँद निकलने पर छलनी से चाँद और फिर पति का चेहरा देखने की रस्म निभाई जाती है। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत खोला जाता है। इस तरह पूरे दिन की भक्ति और प्रेम का समापन एक सुंदर पारिवारिक पल में बदल जाता है।
आधुनिक समय में करवा चौथ का महत्व
आज के समय में करवा चौथ सिर्फ पारंपरिक व्रत नहीं रहा, बल्कि ये प्यार और साथ निभाने का प्रतीक बन गया है। अब कई पति भी अपनी पत्नियों के साथ यह व्रत रखते हैं ताकि एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समानता दिखा सकें। सोशल मीडिया और फिल्मों के कारण करवा चौथ अब एक ग्लोबल फेस्टिवल की तरह बन चुका है।
ये भी पढ़ें- Sanchar Saathi App कब आएगा ?Sarkari Naukri- UPSIDA में जल्द 641 पदों पर बंपर भर्ती होगी
भारत के साथ-साथ विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरे उत्साह से मनाते हैं। शहरों में समूह पूजा, सांझा भजन और कथा-सत्र भी आयोजित किए जाते हैं। महिलाएँ एक-दूसरे को उपहार, साज-श्रृंगार की चीजें और मिठाईयाँ भेंट करती हैं। इससे समाज में आपसी प्रेम और एकता का भाव और भी गहरा हो जाता है।
करवा चौथ भारत की उस परंपरा का हिस्सा है जो प्रेम, त्याग और समर्पण की मिसाल देती है। ये व्रत केवल पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत नहीं करता बल्कि पूरे परिवार में एक सकारात्मक ऊर्जा भी फैलाता है। “करवा चौथ क्या होता है?”, “करवा चौथ कब है 2025?”, “करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?”, “करवा चौथ की कहानी क्या है?” जैसे सभी सवालों के उत्तर इस लेख में दिए गए हैं।
2025 में करवा चौथ 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा और इसका शुभ मुहूर्त शाम 5:58 से 7:11 बजे तक रहेगा। यह त्योहार हर स्त्री के जीवन में प्रेम, श्रद्धा और उम्मीद की नई किरण जगाता है। करवा चौथ का इतिहास, इसकी परंपरा और आधुनिक महत्व आज भी भारतीय संस्कृति की आत्मा को जीवित रखता है। यही कारण है कि हर साल जब चाँद निकलता है, तो हर पत्नी के चेहरे पर चमक और विश्वास दोनों झलकते हैं।