Malegaon Blast Case : नई दिल्ली- आज NIA की स्पेशल कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम धमाके (Malegaon Blast Case) मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित, और अन्य प्रमुख आरोपियों को बरी कर दिया। किसी भी आरोपी के खिलाफ Malegaon Blast Case में हाथ होने का सबूत नहीं मिला। ये फैसला 17 साल बाद आया है — और इसके साथ ही ‘भगवा आतंकवाद’ का वो नैरेटिव भी ध्वस्त हो गया, जिसे लंबे समय तक एक खास राजनीतिक एजेंडे के तहत चलाया गया था।
Malegaon Blast Case क्या है?
29 सितंबर 2008 की रात महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक धमाका हुआ। धमाका मोटरसाइकिल में लगे बम से किया गया था। इसमें 6 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक घायल हो गए। पहले शक SIMI और लश्कर-ए-तैयबा जैसे इस्लामी आतंकी संगठनों पर गया — लेकिन जल्द ही ATS ने केस की दिशा घुमा दी। इसके साथ ही राजनीतिक साजिश शुरू हुई और Malegaon Blast Case का आरोप हिंदुओं पर लगा दिया गया।
ATS की थ्योरी और ‘भगवा आतंक’ की एंट्री
महाराष्ट्र ATS ने इस धमाके के पीछे हिंदू संगठन ‘अभिनव भारत’ और साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित जैसे नामों को आरोपी बनाया। इसी केस के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ‘भगवा आतंकवाद’ या ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल शुरू किया।
कांग्रेस की इस साजिश का जोर शोर से विरोध हुआ। लेकिन 17 साल के बाद कोर्ट में ये साजिश धराशाही हो गई। कोर्ट ने साफ कहा कि, किसी भी आरोपी के खिलाफ Malegaon Blast Case में हाथ होने का सबूत नहीं मिला है। ऐसे में आरोपियों को बरी किया जाता है।
कांग्रेस ने गढ़ा ‘सैफ्रन टेरर’ शब्द
2010 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने संसद में ‘सैफ्रन टेरर’ शब्द का इस्तेमाल कर देशभर में हड़कंप मचा दिया। इसी नैरेटिव के तहत संघ, हिंदू संगठनों और संन्यासियों को कटघरे में लाने की कोशिश की गई — लेकिन आज कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस केस में कोई भी ठोस सबूत नहीं था।
NIA का रोल और केस का टर्निंग पॉइंट
2011 में जब केस NIA (National Investigation Agency) को सौंपा गया, तब जांच में गंभीर खामियां सामने आईं:
किसी भी आरोपी के खिलाफ प्रत्यक्ष सबूत नहीं थे
गवाह मुकर गए
कुछ गवाहों ने कोर्ट में बताया कि उन्हें कांग्रेस सरकार के दबाव में बयान दिलवाए गए
NIA ने चार्जशीट में भी ये माना कि प्रज्ञा ठाकुर की मोटरसाइकिल धमाके के समय उनकी कस्टडी में नहीं थी।
क्या था कांग्रेस का असली मकसद?
विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘भगवा आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़कर कांग्रेस ने:
हिंदू संगठनों को बदनाम करने की कोशिश की
RSS और BJP को कट्टर और चरमपंथी दिखाने का प्रयास किया
वोटबैंक की राजनीति के तहत तुष्टीकरण का एजेंडा चलाया गया
कई भगवा वस्त्रधारी संन्यासियों को जेल में सालों रखा गया, जबकि सबूत कुछ भी नहीं था।
आज का ऐतिहासिक फैसला:
स्पेशल NIA कोर्ट ने कहा: “जांच में बड़ी खामियां थीं, आरोप सिद्ध नहीं हो सके, इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।” सभी आरोपी बेशक बरी हो गए हैं। लेकिन पिछले 17 साल तक उन्हें आतंकवादी कह कर बदनाम किया गया। इसकी वजह से कई लोगों के परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गए। लंबी न्यायिक लड़ाई के बाद इंसाफ तो मिल गया। लेकिन आज सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं- कि, राजनीतिक दल कैसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए लोगों को फंसाया गया और जांच एजेंसियां पर दबाव डाला गया।
आज का फैसला न केवल निर्दोषों को न्याय दिलाने वाला है, बल्कि ये उन लाखों युवाओं के लिए सबक है जिन्होंने मीडिया ट्रायल के आधार पर ‘भगवा आतंकवाद’ जैसा जहर पिया। अब समय है कि देश सच और झूठ में फर्क करे, राजनीति की साजिशों को पहचाने — और हर आतंकी घटना को धर्म के चश्मे से देखने की प्रवृत्ति को रोकें।