Nepal Protest : श्रीलंका – बांग्लादेश की तरह नेपाल में साजिश ?

लिपुलेख विवाद में नेपाल की सख्त प्रतिक्रिया के पीछे भी अमेरिका का समर्थन माना जा रहा है जो संतुलन बिगाड़ रहा। नेपाल प्रोटेस्ट्स पर अमेरिकी हस्तक्षेप के आरोप गंभीर हो रहे हैं क्योंकि नेपाल में अमेरिकी परियोजनाएं पहले से ही चल रही हैं।
Nepal Protest Bharat Viral News

Nepal Protest : नेपाल में इस समय हालात बेहद नाजुक दिख रहे हैं क्योंकि राजधानी काठमांडू की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन लगातार बढ़ते जा रहे हैं। नेपाल प्रोटेस्ट्स को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां भी Sri Lanka – Bangladesh जैसी साजिश हो रही। आज काठमांडू से आई तस्वीरों में संसद भवन पर चढ़ते युवाओं ने लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत और गंभीर चिंताएं पैदा कीं।

नेपाल में सोशल मीडिया बैन के फैसले ने आग में घी का काम किया और युवाओं में गुस्सा बढ़ गया। नेपाल प्रोटेस्ट्स में पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़पें लगातार हो रही हैं जिससे हालात बिगड़ते दिख रहे और कर्फ्यू लगाने की नौबत आ रही। नेपाल की स्थिति देखकर विश्लेषक पूछ रहे हैं कि क्या अमेरिका नेपाल की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।

श्रीलंका और बांग्लादेश की सरकारें संसद कब्जा और हिंसक प्रदर्शनों के कारण गिरीं और अब नेपाल में भी वही तस्वीर। नेपाल में बढ़ते प्रोटेस्ट्स ने भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत पूरे दक्षिण एशिया के लिए लोकतंत्र पर खतरे की घंटी बजाई। नेपाल प्रोटेस्ट्स में देखा गया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन ने जनता को और ज्यादा भड़काने का काम किया है। युवाओं की भीड़ जब सड़कों पर उमड़ी तो सुरक्षा बलों ने लाठीचार्ज किया और फिर आगजनी से स्थिति और गंभीर हुई।

Nepal Protest में US का हाथ?

नेपाल प्रोटेस्ट्स केवल आंतरिक असंतोष का नतीजा नहीं बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति का भी स्पष्ट दखल दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री ओली चीन के करीबी हैं इसलिए अमेरिका नेपाल की सत्ता बदलने की कोशिश कर सकता। नेपाल ने लिपुलेख को अपना क्षेत्र बताया जबकि भारत और चीन व्यापारिक मार्ग मानते हैं जिससे विवाद और तनाव और बढ़ गया।

लिपुलेख विवाद में नेपाल की सख्त प्रतिक्रिया के पीछे भी अमेरिका का समर्थन माना जा रहा है जो संतुलन बिगाड़ रहा। नेपाल प्रोटेस्ट्स पर अमेरिकी हस्तक्षेप के आरोप गंभीर हो रहे हैं क्योंकि नेपाल में अमेरिकी परियोजनाएं पहले से ही चल रही हैं। नेपाल में USAID और मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) के माध्यम से करोड़ों डॉलर की परियोजनाएं संचालित हैं और उनका दबाव दिखता।

नेपाल में अमेरिकी राजनयिक दबाव ने सरकार को कई आर्थिक मोर्चों पर कमजोर किया जिससे जनता में असंतोष और ज्यादा भड़क गया। नेपाल प्रोटेस्ट्स में युवा वर्ग अग्रिम पंक्ति में है जो सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर विरोध कर रहे। काठमांडू में पुलिस की सख्ती और कर्फ्यू ने माहौल को और अधिक विस्फोटक बना दिया और हिंसा बढ़ती जा रही है। नेपाल प्रोटेस्ट्स को लेकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी नजर बनाए हुए हैं और चीन व भारत भी स्थिति पर चिंतित हैं।

नेपाल में अमेरिकी वित्तीय दबाव

नेपाल ने अप्रैल 2025 में एनएमबी बैंक के साथ अमेरिका समर्थित संस्थानों के साथ 60 मिलियन डॉलर ग्रीन बॉन्ड समझौता किया। ये समझौता इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC), ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट (BII) और मेटलाइफ के सहयोग से साइन किया गया। नेपाल प्रोटेस्ट्स और अमेरिकी निवेश के बीच संबंध स्पष्ट दिख रहा है क्योंकि आर्थिक दबाव राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए रास्ता खोलता।

ग्रीन टेक्नोलॉजी और निजी क्षेत्र के विकास के नाम पर अमेरिका नेपाल में अपनी उपस्थिति और मजबूत करता नजर आ रहा। नेपाल प्रोटेस्ट्स के बीच अमेरिका द्वारा सहायता रोकना और शर्तें लगाना कूटनीतिक दबाव की रणनीति मानी जा रही है। नेपाल में USAID की प्रमुख योजनाएं कुछ समय रोकी गईं ताकि सरकार पर दबाव बढ़े और जनता का गुस्सा भड़के।

Nepal protest gen z Bharat Viral News
Nepal protest gen z Bharat Viral News

नेपाल प्रोटेस्ट्स का एक पहलू ये भी है कि आर्थिक मोर्चे पर अमेरिकी रणनीति से नेपाल पूरी तरह प्रभावित हुआ। नेपाल में बढ़ते असंतोष ने प्रधानमंत्री ओली की स्थिति कमजोर कर दी और विपक्ष को बड़ा मौका मिला। नेपाल प्रोटेस्ट्स अब सिर्फ सोशल मीडिया बैन का मुद्दा नहीं बल्कि सत्ता परिवर्तन की दिशा में बदलते दिख रहे। नेपाल की जनता अब प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग पर डट गई है और हालात नियंत्रण से बाहर होते जा रहे।

नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश की समानताएं

नेपाल प्रोटेस्ट्स को श्रीलंका और बांग्लादेश की घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि तीनों जगह हालात मिलते जुलते। श्रीलंका में आर्थिक संकट और संसद पर कब्जे से सरकार गिरी और बांग्लादेश में हिंसा से लोकतंत्र हिल गया। नेपाल में भी वही घटनाक्रम दिख रहा है जहां संसद भवन घेरने और हिंसक भीड़ का दबाव राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर रहा।

नेपाल प्रोटेस्ट्स को लेकर सवाल है कि क्या यह सब स्वतःस्फूर्त है या किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का नतीजा। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में सोशल मीडिया की भूमिका भी बेहद अहम रही क्योंकि अफवाहों से भीड़ भड़काई गई। नेपाल में सोशल मीडिया बैन ने ही विरोध को बढ़ाया और दुनिया भर में इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। नेपाल प्रोटेस्ट्स ने साबित किया कि दक्षिण एशिया में लोकतंत्र बाहरी हस्तक्षेप और आंतरिक संकटों से हमेशा असुरक्षित रहता है।

नेपाल की स्थिति भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नेपाल की राजनीतिक स्थिरता सीधे तौर पर सीमा सुरक्षा से जुड़ी। नेपाल प्रोटेस्ट्स ने यह साफ किया कि आर्थिक और राजनीतिक दबाव मिलकर किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिला सकते हैं। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश तीनों जगह अमेरिका का दखल देखा गया जिससे कई देशों ने चिंता व्यक्त की।

ये भी पढ़ें – मोदी सरकार की नई योजना से 3.5 करोड़ नौकरियां

नेपाल प्रोटेस्ट्स लोकतंत्र के लिए चेतावनी ?

नेपाल प्रोटेस्ट्स केवल एक देश की समस्या नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत हैं। नेपाल में बढ़ते प्रोटेस्ट्स ने दिखाया कि जनता और सोशल मीडिया की शक्ति किसी भी सरकार को अस्थिर कर सकती। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश की घटनाएं ये साबित करती हैं कि बाहरी हस्तक्षेप लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने का प्रयास करता।

नेपाल प्रोटेस्ट्स पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर है और भारत समेत क्षेत्रीय देशों को इसमें गंभीरता से ध्यान देना होगा। नेपाल में स्थिरता तभी आएगी जब सरकार पारदर्शिता, संवाद और जनता की चिंताओं का समाधान करेगी अन्यथा हिंसा जारी रहेगी। नेपाल प्रोटेस्ट्स का असर पड़ोसी देशों पर भी दिखेगा क्योंकि अस्थिरता से क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा प्रभावित होगी।

नेपाल प्रोटेस्ट्स को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यहां भी श्रीलंका और बांग्लादेश जैसी साजिश चल रही। नेपाल की राजनीति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार संकट को कैसे संभालती है और संवाद कितना करती। नेपाल प्रोटेस्ट्स ने यह सच्चाई सामने रख दी कि लोकतंत्र को बचाना आज दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका। नेपाल की जनता अब निर्णायक मोड़ पर खड़ी है और आने वाले दिनों में राजनीतिक तस्वीर और बदल सकती है।

author avatar
Mohit Singh Author
Mohit Singh Chaudhary is a seasoned journalist with over 10 years of experience in the media industry. Throughout his career, he has worked with several reputed news organizations, including India News, Zee News, ANB National, Khabar Fast, Citizen Voice, OK India, HCN News, and VK News.
Share it :

सम्बंधित ख़बरें